‘दुश्मन अगर ख़ुद को बर्बाद करने पर तुला हो तो न दें दख़ल’, ट्रंप की टैरिफ़ की धमकी पर भारत को क्या सलाह दे रहे हैं जानकार

ट्रंप की टैरिफ़ धमकी पर भारत को जानकार क्या सलाह दे रहे हैं?

नई दिल्ली: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर टैरिफ़ को लेकर धमकी भरे लहजे में बयान दिया है — और इस बार निशाने पर हैं भारत जैसे देश जो अमेरिका को “न्यायोचित व्यापार नहीं” दे रहे हैं। ट्रंप की यह रणनीति एक बार फिर वैश्विक व्यापार के संतुलन को हिला सकती है। लेकिन भारतीय जानकारों की राय इससे बिल्कुल अलग है — उनका मानना है कि अगर दुश्मन ख़ुद को बर्बाद करने पर तुला हो, तो भारत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

ट्रंप की रणनीति: ‘अमेरिका फर्स्ट’ फिर से?

डोनाल्ड ट्रंप 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में फिर से उतरने की तैयारी में हैं, और उनकी चुनावी रणनीति में व्यापार टैरिफ़ एक अहम हथियार है। उन्होंने हाल ही में संकेत दिया कि अगर वह सत्ता में लौटे तो चीन, भारत और यूरोपीय देशों पर भारी टैरिफ़ लगाएंगे ताकि अमेरिकी उद्योगों को “सुरक्षा” दी जा सके।

जानकारों की राय: संयम और अवसर की नीति

भारतीय विदेश नीति और व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की बयानबाज़ी अमेरिका के लिए ज़्यादा नुकसानदेह हो सकती है।

डॉ. अरुण तिवारी, व्यापार विश्लेषक:
“अगर ट्रंप टैरिफ़ लगाते हैं, तो इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर महंगाई का बोझ बढ़ेगा। भारत को इस समय केवल स्मार्ट व्यापारिक फैसले लेने चाहिए और किसी भावनात्मक प्रतिक्रिया से बचना चाहिए।”

प्रो. मीनाक्षी राव, अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ:
“ट्रंप की नीति दीर्घकालिक रूप से अमेरिका को ही कमजोर करेगी। भारत को इसे अवसर के रूप में देखना चाहिए — नए व्यापारिक साझेदार खोजें और घरेलू उत्पादन को मज़बूत करें।”

‘ख़ुद को बर्बाद करने पर तुला हो’ – क्या यह ट्रंप पर लागू होता है?

यह कहावत — ‘दुश्मन अगर ख़ुद को बर्बाद करने पर तुला हो तो न दें दख़ल’ — इन परिस्थितियों में सटीक बैठती है। अमेरिका अपने ही उपभोक्ताओं और व्यापारिक साझेदारों पर दबाव बनाकर आत्मघाती कदम उठा सकता है।

भारत को चाहिए कि वह:

  • टैरिफ़ की सीधी प्रतिक्रिया न दे
  • व्यापारिक विविधता पर फोकस करे
  • आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति दे
  • ब्रिक्स और ASEAN जैसे समूहों के साथ व्यापारिक साझेदारी मज़बूत करे

निष्कर्ष

ट्रंप की धमकियों का जवाब उत्तेजना से नहीं, बल्कि रणनीति से देना होगा। भारत को भावनात्मक प्रतिक्रिया से बचते हुए दीर्घकालिक फायदे पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आखिरकार, अगर कोई ख़ुद ही अपनी नाव डुबो रहा हो, तो हमें बस किनारे पर खड़े रहना चाहिए — और अपने जहाज़ को मज़बूत करना चाहिए।

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