रूसी तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार चीन, फिर भी ट्रंप के निशाने पर भारत

🇮🇳 रूसी तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार चीन, फिर भी ट्रंप के निशाने पर भारत क्यों?

🛢 ट्रंप की धमकी और भारत पर सीधा हमला

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार नीति को हिलाने की कोशिश की है। अपने हालिया बयानों में उन्होंने भारत पर टैरिफ लगाने की धमकी दी है — यह कहते हुए कि भारत “अमेरिका के साथ न्यायोचित व्यापार नहीं करता”। लेकिन सवाल उठता है — जब रूसी तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार चीन है, तो भारत ट्रंप के निशाने पर क्यों?


🔍 तथ्य: रूसी तेल का सबसे बड़ा ग्राहक है चीन

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, तो रूसी तेल एशियाई देशों की ओर मुड़ गया। आंकड़ों के अनुसार:

  • चीन बना रूस से कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक।
  • भारत ने भी डिस्काउंट पर रूसी तेल खरीदा, लेकिन चीन के मुकाबले आयात काफी कम रहा।
  • चीन का व्यापार रूस से कई गुना अधिक है — तेल से लेकर गैस, कोयला और तकनीक तक।

फिर भी ट्रंप की नजर में भारत “असमान” व्यापारी क्यों है?


🇺🇸 ट्रंप की राजनीति: दिखावे का दुश्मन बनाना

ट्रंप का राजनीतिक मॉडल “अमेरिका फर्स्ट” पर आधारित है। 2024 के चुनाव के लिए उनकी रणनीति में तीन प्रमुख बातें शामिल हैं:

  1. बाहरी दुश्मनों का निर्माण – जैसे चीन, भारत, मैक्सिको
  2. अमेरिकी उद्योगों को बचाने के नाम पर टैरिफ बढ़ाना
  3. लोकल वोटर्स को अपील करना: ‘देखो, मैं तुम्हारे लिए लड़ रहा हूं’

भारत, एक लोकतांत्रिक लेकिन उभरती शक्ति होने के नाते, ट्रंप के लिए एक आसान निशाना है — न चीन जितना बड़ा दुश्मन, न यूरोप जितना सहयोगी।


📊 भारत बनाम चीन: रूसी तेल और व्यापार तुलना

पैमानाभारतचीन
रूसी तेल आयात~1.6 मिलियन बैरल/दिन~2.3 मिलियन बैरल/दिन
रूस से कुल व्यापार~$50 बिलियन~$240 बिलियन
राजनीतिक समीकरणरूस से सामरिक संतुलनरूस से रणनीतिक गठबंधन
अमेरिका से संबंधरक्षा साझेदारी व व्यापारतकनीकी/ट्रेड टकराव

➡️ फिर भी ट्रंप का बयान भारत को निशाना बनाता है — शायद इसलिए कि भारत अमेरिका के साथ साझेदारी भी चाहता है और स्वतंत्र नीति भी अपनाता है।


🧠 जानकारों की राय: भारत को चाहिए रणनीतिक संयम

प्रो. राजीव मेहता, अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ
“ट्रंप की टिप्पणियों को चुनावी शोर के रूप में देखना चाहिए। भारत को अपनी ऊर्जा नीति और बहुपक्षीय संबंधों में कोई बदलाव नहीं करना चाहिए।”

नीरा शंकर, तेल एवं ऊर्जा विश्लेषक
“भारत का तेल आयात पूरी तरह आर्थिक दृष्टिकोण से प्रेरित है, कोई राजनीतिक संधि नहीं। चीन की तुलना में भारत का असर कहीं कम है।”


🔮 भारत की राह: संतुलन, स्वाभिमान और अवसर

भारत को ट्रंप की धमकियों से विचलित नहीं होना चाहिए। बल्कि:

  • ऊर्जा आपूर्ति के स्रोत और विविध बनाए
  • अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संवाद बनाए रखें
  • चीन के मुकाबले अपनी पारदर्शिता और लोकतांत्रिक स्थिति को बढ़ावा दें

✍️ निष्कर्ष

जब बात रूसी तेल की होती है, तो सबसे बड़ा खिलाड़ी चीन है। लेकिन ट्रंप की राजनीतिक गणित में भारत एक रणनीतिक मोहरा बनता दिख रहा है — शायद इसलिए कि भारत न तो पूरी तरह अमेरिका का ‘साथी’ है, न ‘प्रतिद्वंदी’।

भारत को चाहिए कि वह आत्मनिर्भरता, रणनीतिक संतुलन और अंतरराष्ट्रीय सम्मान के रास्ते पर चलते हुए, भावनात्मक नहीं,

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